(को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में कुछ सदस्यों की राजनीति और मैनेजिंग कमिटी की लापरवाही किस तरह से वहां रहने वाले और उनकी फैमिली को खतरे में डालती है, इस किताब में आप पढ़ सकते हैं। किताब का नाम है- हाउसिंग सोसायटी में सियासत; जान पर आफत! - https://www.amazon.in/dp/B08X2RS7MB )
करप्शन का मौका देता है सोसायटी से जुड़े काम। सोसायटी में कई तरह के काम करने होते हैं। हर काम पर होने वाले खर्च का हिसाब रखना होता है। किसी सामान के बदले दुकानदार से रसीद लेना होता है, रसीद नहीं होने पर वाउचर बनाना होता है, ज्यादा रकम वाले काम के लिए कम से कम तीन कोटेशन मंगवाने होते हैं। आमतौर पर कोटेशन में कमीशनखोरी, वाउचर में ज्यादा रकम बताना, गलत रसीद बनवाना- ये सब हाउसिंग सोसायटी में करप्शन का खेल खेलने देते हैं। कई बार सोसायटी का सदस्य सोसायटी में होने वाले काम में अडंगा लगाता है, और वह तब जाकर मानता है जब काम करने करवाने वाला कॉन्ट्रैक्टर या तो उसे पैसे देता है या फिर किसी रेस्टोरेंट बगैरह में पार्टी देता है।
यहां हम कुछ सोसायटी (नाम नहीं लेंगे) में होने वाले करप्शन के खेल की चर्चा कर रहे हैं। हालांकि, इसका कोई सबूत मेरे पास नहीं है। बस, संबंधित सोसायटी के लोगों और उस सोसायटी में काम करने वाले कॉन्ट्रैक्टर या इलेक्ट्रिशियन या गटर सफाई करने वालों की बातों के आधार पर ये जानकारी दे रहा हूं।
एक सोसायटी में नगरपालिका के पानी के पाइपलाइन से सोसायटी की टंकी को जोड़ना था। इस काम के लिए कॉन्ट्रैक्टर को सोसायटी की मैनेजिंग कमिटी ने 80 हजार रुपए दिए। सोसायटी की सालाना आम बैठक (एजीएम) में भी 80 हजार रुपए ही पास कराए गए थे। उसी सोसायटी का एक सदस्य भी टंकी और पाइपलाइन का काम करता है। एजीएम में वो भी था लेकिन जब काम पूरा हुआ, तो उस सदस्य को लगा कि कॉन्ट्रैक्टर को जितना दिया गया वो ज्यादा था। बाद में उस सदस्य ने उस कॉन्ट्रैक्टर का कोटेशन देखा तो वह महज 50 हजार रुपए का था। यानी मैनेजिंग कमिटी ने 30 हजार रुपए ज्यादा एजीएम में पास कराया। बाद में पता चला कि सोसायटी के सेक्रेटरी ने कमीशन खाया था।
एक दूसरी सोसायटी की बात करता हूं। सोसायटी में डिस्टेंपर का काम कराना था। ज्यादा काम नहीं था। एक कॉन्ट्रैक्टर ने 40 हजार रुपए का कोटेशन दिया था। इस पर सोसायटी के चेयरमैन ने कॉन्ट्रैक्टर से ज्यादा पैसों का
कोटेशन देने को कहा। कॉन्ट्रैक्टर को काम चाहिए था, चेयरमैन ने जैसा कहा, कॉन्ट्रैक्टर ने वैसा किया। कॉन्ट्रैक्टर
ने 80 हजार का संशोधित कोटेशन दिया। बाद में पता चला कि चेयरमैन ने कॉन्ट्रैक्टर से कमीशन खाया।
एक और सोसायटी की बात बताता हूं। एक सोसायटी की ईमानदार मैनेजिंग कमिटी ने एक कॉन्ट्रैक्टर को सोसायटी की बिल्डिंग के रिपेयर, कलर, क्रैकफिलिंग का काम दिया। यहां पर करप्शन का खेल कमिटी वालों ने नहीं, बल्कि सोसायटी के कुछ सदस्यों ने खेला। उनका करप्शन का खेल खेलने का तरीका भी अनोखा था। वो कॉन्ट्रैक्टर के हर काम का विरोध करते थे और बेवजह गलतियां निकाला करते थे। कॉन्ट्रैक्टर भी उनकी इस आदत से परेशान हो गया। कॉन्ट्रैक्टर ने इसका तरीका खुद ही निकाला। जो लोग कॉन्ट्रैक्टर के काम का विरोध करते थे, उनको कॉन्ट्रैक्टर ने रेस्टोरेंट में पार्टी दी और जमकर शराब पिलाई। इसके बाद से सोसायटी के सदस्यों ने कॉन्ट्रैक्टर के काम का विरोध करना छोड़ दिया।
एक दूसरी सोसायटी के सेक्रेटरी ने तो बड़ा हाथ मारा। सोसायटी के सदस्यों को भी इसका पता तब चला जब वह सेक्रेटरी सोसायटी के अपने फ्लैट को बेचकर दूसरी जगह फ्लैट ले लिया। सेक्रेटरी ने सोसायटी की एजीएम में करीब 35 लाख रुपए का बिल्डिंग के रिपेयर, कलर, क्रैक फिलिंग का कोटेशन पास करवाया। उस कॉन्ट्रैक्टर से काम देने के बदले 5 लाख रुपए कमीशन लिया। कॉन्ट्रैक्टर ने जब काम खत्म किया, तो उस सोसायटी के लोग काम से संतुष्ट नहीं हुए। इसी बीच सोसायटी का सेक्रेटरी अपना फ्लैट बेच चुका था और दूसरी जगह फ्लैट ले चुका था। सोसायटी के लोगों ने कॉन्ट्रैक्टर से खराब काम के बारे में पूछा, तो उसने सीधा जवाब दिया "मैं क्या करूं सेक्रेटरी ने मुझसे 5 लाख रुपए लिए और अब बाकी के पैसे में जैसा काम हो सकता था वैसा काम किया। "
कई सोसायटी में इलेक्ट्रिशियन का काम करने वाले एक शख्स का कहना है कि सोसायटी का चेयरमैन आकर उससे पैसे मांगते रहता है। सोसायटी में नियमित तौर पर गटर साफ करने वाले एक शख्स का कहना है कि कुछ सोसायटी के चेयरमैन उससे आकर पैसे मांगते रहता है। इलेक्ट्रिशियन और गटर साफ करने वाले शख्स का कहना है कि काम दिलाने के नाम पर चेयरमैन अक्सर पैसे मांगता है।
एक सोसायटी में तो छत पर पतरा लगाने वाला कॉन्ट्रैक्टर ने काम को बीच में ही छोड़ दिया। सोसायटी के लोगों ने जब कॉन्ट्रैक्टर से इस बारे में सवाल किया गया था, तो कॉन्ट्रैक्टर ने कहा " मैं क्या करूं, सेक्रेटरी और चेयरमैन ने हमसे पैसा लिया है। बचे पैसे में जितना काम हो सकता था, उतना कर दिया। " इस बात की खबर जब सोसायटी के सदस्यों को लगी तो सेक्रेटरी और चेयरमैन को तुरंत पद से नहीं, बल्कि कमिटी से भी हटा दिया गया। और फिर बाकी के पैसे कॉन्ट्रैक्टर को देकर काम पूरा करवाया गया।
हालांकि, कई बार कुछ सोसायटी के चेयरमैन, सेक्रेटरी करप्शन के गलत आरोप में भी फंस जाते हैं। सोसायटी
का कोई काम करवाने के लिए कॉन्ट्रैक्टर को पैसे तो देते हैं, लेकिन कॉन्ट्रैक्टर पैसे लेकर शहर छोड़कर ही भाग
जाता है। ऐसे में सारा दोष चेयरमैन, सेक्रेटरी पर मढ़ दिया जाता है और पैसे खाने का इल्जाम लगा दिया जाता है।
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