सोसाइटी का फंड, कैसे चुपके-चुपके खाली हो जाता है? अगर हां, तो ये वीडियो आपके लिए है। लाइक करें, सब्सक्राइब करें और बेल आइकन दबाएं ताकि ऐसे और वीडियोज मिस न हों।चलिए शुरू करते हैं!"
दोस्तों... शुरुआत करके हैं मुंबई से सटे नालासोपारा पश्चिम की एक हाउसिंग सोसायटी की लैटेस्ट बैलेंश सीट से। यह बैलेंस शीट 31 मार्च 2025 को समाप्त हुए वित्त वर्ष की है। आप अपने स्क्रीन पर इस बैलेंस शीट को देख सकते हैं। बैलेंश सीट में साफ दिख रहा है कि सोसायटी की मैनेजिंग कमिटी ने संबंधित वित्त वर्ष में कमाई से एक लाख से ज्यादा खर्च कर दिया है। यानी आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैय्या। इस सोसायटी के लोगों की मानें तो करीब अब तक हुई 17 एजीएम में से पहली बार ऐसा हुआ है कि बैलेंश सीट निगेटिव में आई है। जरा सोचिये, अगर ऐसे ही मैनेजिंग कमिटी कमाई से ज्यादा खर्च करती रही तो सोसायटी की आर्थिक स्थिति आने वाले समय में क्या होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं। और आर्थिक स्थिति खराब होगी तो फिर मेनटेनेंस बढ़ाना होगा, कई जरूरी खर्च में कटौती करनी पड़ेगी।

बात मेनटेनेंस बढ़ाने की हो रही है, तो उसी सोसायटी की मैनेजिंग कमिटी ने बैलेंस शीट के साथ डिफॉल्टर मेंबर्स के बकाया मेनटेनेंस की लिस्ट भी जारी की थी। तो, ये रही बकाया मेनटेनेंस की लिस्ट। मेंबर्स का नाम हमने हटाया दिया है। आप देख सकते हैं कि मेंबर्स पर कुल मिलाकर करीब 1 लाख 23 हजार रुपये से ज्यादा मेनटेनेंस बकाया है। जरा सोचिये, जब अभी इतना मेनटेनेंस मेंबर्स पर बकाया है तो जब मैनेजिंग कमिटी बैलेंस शीट सुधारने और कमाई बढ़ाने के लिए मेनटेनेंस बढ़ा देगी, तो कितना ज्यादा डिफॉल्टर बढ़ जाएंगे। वैसे हाउसिंग सोसायटी के सारे मेंबर्स को भी समय पर मेनटेनेंस जमा करना चाहिए। मेंबर्स जो मेनटेनेंस देते हैं, उसी से सोसायटी को मैनेज किया जाता है। वॉचमैन, स्वीपर की सैलरी, बिजली और पानी बिल या सोसायटी में कोई भी काम होता है तो उसका भुगतान मेंबर्स जो मेनटेनेंस देते हैं, उसी से किया जाता है।

जब सोसायटी के कुछ मेंबर्स ने मैनेजिंग कमिटी से बैलेंश सीट में एक लाख रुपए से ज्यादा के नुकसान की वजह पूछी, तो उसका कमिटी ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। साथ ही कमिटी ने एजीएम के एजेंडे में भी इतनी गंभीर बात को चर्चा के लिए शामिल नहीं किया। ये देखिये...ये है उसी सोसायटी की एजीएम का एजेंडा। जिस बैलेंस शीट की बात मैं कर रहा हूं, उसी के साथ एजेंडा भी मेंबर्स को दिया गया था। आप देख सकते हैं एजेंडा को। ध्यान से देखिये कहीं पर इसका जिक्र है। नहीं ना...।
आम तौर पर ऐसे गंभीर विषय पर पहले मैनेजिंग कमिटी आपस में चर्चा करती है और उसका कारण और उपाय तलाशती है। इस चर्चा को मैनेजिंग कमिटी के मिनट्स पर इस शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही एजीएम के समय इसे एजीम के एजेंडा में शामिल किया जाना चाहिए ताकि सोसायटी के सारे सदस्य इस गंभीर विषय पर चर्चा कर सकें और कोई अंतिम परिणाम पर पहुंच सकें। लेकिन, ऐसा वही कमिटी करती है जो जिम्मेदारी होती है, जो पारदर्शिता में भरोसा करती है और खुद को सोसायटी का सेवक समझती है, सोसायटी का मालिक नहीं। लेकिन, जिस सोसायटी की बात मैं कर रहा हूं उस सोसायटी की मैनेजिंग कमिटी ने इस गंभीर विषय पर ना कमिटी की बैठक में कोई चर्चा की और ना ही इसे एजीएम के एजेंडे में शामिल किया। जो कि मैनेजिंग कमिटी पर शक को बढ़ाता है। मैनेजिंग कमिटी के ऐसे व्यवहार से सोसायटी के लोगों को कमिटी से भरोसा कम होता है।

आप सोच रहे होंगे कि अगर कमिटी ने कमाई से ज्यादा खर्च कर दिया तो इसमें सोसायटी के मेंबर्स क्या कर सकते हैं। ज्यादा काम किया होगा, तो खर्च भी तो ज्यादा होगा। लेकिन यहीं पर आपको सतर्क होने की जरूरत है। चाहे आप मैनेजिंग कमिटी के मेंबर्स हों या सिर्फ सोसायटी के मेंबर्स हो यानी फ्लैट ऑनर हो या फिर अगर मैनेजिंग कमिटी के चेयरमैन, सेक्रेटरी या ट्रेजरार जैसे कोई पदाधिकारी हों, इस गंभीर विषय पर सतर्क रहना चाहिए। ध्यान रखिये आप जो मेनटेनेंस देते हैं, वह कहां खर्च किया जा रहा है, इसका पता आपको होना चाहिए। आप तो जानते ही होंगे जहां जहां पैसा, वहां वहां करप्शन की आशंका...। और जिसके पास पैसा खर्च करने का पावर, उसका करप्शन होते रहता है उजागर। इसलिये कमिटी जो आपके पैसे खर्च कर रही है, उस पर नजर रखना जरूरी है।
अगर आपने संसद में या राज्य विधान सभाओं में बजट पास करते हुए देखा होगा या सुना होगा या पढ़ा होगा, तो विपक्ष कितना हंगामा करता है, ये तो पता ही होगा। विपक्ष हंगामा करके सरकार पर दबाव बनाता है और हर हर पैसे का हिसाब मांगता है, हर पैसे का सही सही इस्तेमाल करने की मांग करता है, लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ाने का विरोध करता है।
किसी भी हाउसिंग सोसायटी के मामले में उस सोसायटी की मैनेजिंग कमिटी सरकार होती है, जबकि सोसायटी के बाकी सदस्य यानी फ्लैट मालिक विपक्ष होते हैं। तो विपक्ष की जिम्मेदारी सोसायटी के सभी सदस्यों यानी फ्लैट मालिकों पर होती है।
तो, यहां पर सोसायटी के पैसे को सही से कमिटी कैसे खर्च करे और कमिटी के कामों पर सोसायटी के दूसरे सदस्य कैसे लगाम रखें, इसके बारे में बता रहा हूं।
सही से पैसा कैसे खर्च करे कमिटी
a) मैनेजिंग कमिटी को कोई भी काम करने से पहले सोसायटी का बैलेंस देखना चाहिए
b) किसी भी काम के कोटेशन और कॉन्ट्रैक्टर पर विस्तार से चर्चा करना चाहिए। कमिटी के सभी सदस्यों को इस चर्चा में शामिल करना चाहिए। अगर समय नहीं रहता है या फिजीकली मीटिंग नहीं कर पाते हैं तो व्हाट्स एप ग्रुप के जरिये चर्चा करें।
c) कोटेशन के प्राइस को कम करवाएं।
d) हमेशा से एक से ज्यादा कॉन्ट्रैक्टर से कोटेशन मंगवाएं। किसी भी काम के लिए किसी एक कॉन्ट्रैक्टर पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
e) हमेशा सोसायटी के फायदे के लिए कॉन्ट्रैक्टर का चुनाव करें। कॉन्ट्रैक्टर का बैंक ग्राउंड चेक करें।
इस काम में सोसायटी के ट्रेजरार की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। ट्रेजरार सोसायटी के पैसों या फंड का रखवाला होता है। अगर फंड कम पड़ रहा हो, तो कमिटी को इसके बारे में सूचित करना चाहिए। मैनेजिंग कमिटी के दूसरे सदस्यों को भी अलर्ट रहना चाहिए कि चेयरमैन और सेक्रेटरी कोई ऐसा काम तो नहीं कर रहे हैं जो सोसायटी के लिए जरूरी नहीं है या फिर किसी काम के लिए कहीं ज्यादा पैसों का तो भुगतान नहीं किया जा रहा है।
अक्सर हाउसिंग सोसायटियों में अक्सर कॉन्ट्रैक्टर के साथ मिलकर सोसायटी के पदाधिकारी करप्शन का खेल करते हैं और सोसायटी का पैसा डकार जाते हैं। यहां हम कुछ सोसायटी (बिना नाम लिये) में होने वाले करप्शन के खेल की चर्चा कर रहे हैं। हालांकि, इसका कोई सबूत मेरे पास नहीं है। बस, संबंधित सोसायटी के लोगों और उस सोसायटी में काम करने वाले कॉन्ट्रैक्टर या इलेक्ट्रिशियन या गटर सफाई करने वालों की बातों के आधार पर ये जानकारी दे रहा हूं।
जिस हाउसिंग सोसायटी की बैलेंस शीट की बात मैं कर रहा हूं, उस सोसायटी की उसी कमिटी ने जिसने बैलेंस शीट तैयार किया है, 2019 में भी करप्शन का 'बेशर्म खेल' खेला था। Housing Society के रिपेयर के लिए कोटेशन 9.37 लाख का था, लेकिन AGM में 11 लाख का बजट पास कराया और साथ ही ये भी कहा गया था कि एक-डेढ़ लाख रुपए ज्यादा खर्च हो सकता है। साथ ही मेनटेनेंस भी बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था।
करप्शन का मौका देता है सोसायटी से जुड़े काम। सोसायटी में कई तरह के काम करने होते हैं। हर काम पर होने वाले खर्च का हिसाब रखना होता है। किसी सामान के बदले दुकानदार से रसीद लेना होता है, रसीद नहीं होने पर वाउचर बनाना होता है, ज्यादा रकम वाले काम के लिए कम से कम तीन कोटेशन मंगवाने होते हैं। आमतौर पर कोटेशन में कमीशनखोरी, वाउचर में ज्यादा रकम बताना, गलत रसीद बनवाना- ये सब हाउसिंग सोसायटी में करप्शन का खेल खेलने देते हैं। कई बार सोसायटी का सदस्य सोसायटी में होने वाले काम में
अडंगा लगाता है, और वह तब जाकर मानता है जब काम करने करवाने वाला कॉन्ट्रैक्टर या तो उसे पैसे देता है या फिर किसी रेस्टोरेंट बगैरह में पार्टी देता है।
एक सोसायटी में नगरपालिका के पानी के पाइपलाइन से सोसायटी की टंकी को जोड़ना था। इस काम के लिए कॉन्ट्रैक्टर को सोसायटी की मैनेजिंग कमिटी ने 80 हजार रुपए दिए। सोसायटी की सालाना आम बैठक (एजीएम) में भी 80 हजार रुपए ही पास कराए गए थे। उसी सोसायटी का एक सदस्य भी टंकी और पाइपलाइन का काम
करता है। एजीएम में वो भी था लेकिन जब काम पूरा हुआ, तो उस सदस्य को लगा कि कॉन्ट्रैक्टर को जितना दिया गया वो ज्यादा था। बाद में उस सदस्य ने उस कॉन्ट्रैक्टर का कोटेशन देखा तो वह महज 50 हजार रुपए का था। यानी मैनेजिंग कमिटी ने 30 हजार रुपए ज्यादा एजीएम में पास कराया। बाद में पता चला कि सोसायटी के सेक्रेटरी ने कमीशन खाया था।
एक दूसरी सोसायटी की बात करता हूं। सोसायटी में डिस्टेंपर का काम कराना था। ज्यादा काम नहीं था। एक कॉन्ट्रैक्टर ने 40 हजार रुपए का कोटेशन दिया था। इस पर सोसायटी के चेयरमैन ने कॉन्ट्रैक्टर से ज्यादा पैसों का कोटेशन देने को कहा। कॉन्ट्रैक्टर को काम चाहिए था, चेयरमैन ने जैसा कहा, कॉन्ट्रैक्टर ने वैसा किया। कॉन्ट्रैक्टर ने 80 हजार का संशोधित कोटेशन दिया। बाद में पता चला कि चेयरमैन ने कॉन्ट्रैक्टर से कमीशन खाया।
एक और सोसायटी की बात बताता हूं। एक सोसायटी की ईमानदार मैनेजिंग कमिटी ने एक कॉन्ट्रैक्टर को सोसायटी की बिल्डिंग के रिपेयर, कलर, क्रैकफिलिंग का काम दिया। यहां पर करप्शन का खेल कमिटी वालों ने नहीं, बल्कि सोसायटी के कुछ सदस्यों ने खेला। उनका करप्शन का खेल खेलने का तरीका भी अनोखा था। वो कॉन्ट्रैक्टर के हर काम का विरोध करते थे और बेवजह गलतियां निकाला करते थे। कॉन्ट्रैक्टर भी उनकी इस आदत से परेशान हो गया। कॉन्ट्रैक्टर ने इसका तरीका खुद ही निकाला। जो लोग कॉन्ट्रैक्टर के काम का विरोध करते थे, उनको कॉन्ट्रैक्टर ने रेस्टोरेंट में पार्टी दी और जमकर शराब पिलाई। इसके बाद से सोसायटी के सदस्यों ने कॉन्ट्रैक्टर के काम का विरोध करना छोड़ दिया।
एक दूसरी सोसायटी के सेक्रेटरी ने तो बड़ा हाथ मारा। सोसायटी के सदस्यों को भी इसका पता तब चला जब वह सेक्रेटरी सोसायटी का अपना फ्लैट बेचकर दूसरी जगह फ्लैट ले लिया। सेक्रेटरी ने सोसायटी की एजीएम में करीब 35 लाख रुपए का बिल्डिंग के रिपेयर, कलर, क्रैक फिलिंग का कोटेशन पास करवाया। उस कॉन्ट्रैक्टर से काम देने के बदले 5 लाख रुपए कमीशन लिया। कॉन्ट्रैक्टर ने जब काम खत्म किया, तो उस सोसायटी के लोग काम से संतुष्ट नहीं हुए। इसी बीच सोसायटी का सेक्रेटरी अपना फ्लैट बेच चुका था और दूसरी जगह फ्लैट ले चुका था। सोसायटी के लोगों ने कॉन्ट्रैक्टर से खराब काम के बारे में पूछा, तो उसने सीधा जवाब दिया "मैं क्या करूं सेक्रेटरी ने मुझसे 5 लाख रुपए लिए और अब बाकी के पैसे में जैसा काम हो सकता था वैसा काम किया। "
कई सोसायटी में इलेक्ट्रिशियन का काम करने वाले एक शख्स का कहना है कि सोसायटी का चेयरमैन आकर उससे पैसे मांगते रहता है। सोसायटी में नियमित तौर पर गटर साफ करने वाले एक शख्स का कहना है कि कुछ सोसायटी के चेयरमैन उससे आकर पैसे मांगते रहता है। इलेक्ट्रिशियन और गटर साफ करने वाले शख्स का कहना है कि काम दिलाने के नाम पर चेयरमैन अक्सर पैसे मांगता है।
एक सोसायटी में तो छत पर पतरा लगाने वाला कॉन्ट्रैक्टर ने काम को बीच में ही छोड़ दिया। सोसायटी के लोगों ने जब कॉन्ट्रैक्टर से इस बारे में सवाल किया गया था, तो कॉन्ट्रैक्टर ने कहा " मैं क्या करूं, सेक्रेटरी और चेयरमैन ने हमसे पैसा लिया है। बचे पैसे में जितना काम हो सकता था, उतना कर दिया। " इस बात की खबर जब सोसायटी के सदस्यों को लगी तो सेक्रेटरी और चेयरमैन को तुरंत पद से नहीं, बल्कि कमिटी से भी हटा दिया गया। और फिर बाकी के पैसे कॉन्ट्रैक्टर को देकर काम पूरा करवाया गया।
हाउसिंग सोसायटी की इस हकीकत को बताने का मेरे मतलब ये कतई नहीं है कि आप अपनी कमिटी पर विश्वास ना करें, या कमिटी को हमेशा शक की नजर से देखें। बल्कि मैं चाहता हूं कि आप जागरूक बनें और सोसायटी के कामों पर नजर रखें ताकि कमिटी बेलगाम ना हो जाए।
तो "दोस्तों, हाउसिंग सोसाइटी की मैनेजिंग कमिटी (MC) का काम है सोसाइटी को बेहतर बनाना, लेकिन आपने देखा कि कई बार ये कमिटी ही किस तरह से अपनी सोसाइटी का दुश्मन बन जाती है। अब इसे संक्षेप में जानिये- कैसे
1- अनावश्यक खर्चे: मैनेजिंग कमिटी यानी MC मेंबर्स फर्जी बिल बनाकर पैसे निकाल लेते हैं। जैसे, रंगाई-पुताई का काम 5 लाख का बिल, लेकिन असल में सिर्फ 2 लाख का खर्च। बाकी पैसे? उनके पॉकेट में!
2-टेंडर की धांधली: कॉन्ट्रैक्टर्स को टेंडर देने के बदले कमीशन। आपकी सोसाइटी का मेंटेनेंस खराब, लेकिन MC अमीर!
3-मिसयूज ऑफ फंड्स: AGM में पास न होने वाले प्रोजेक्ट्स पर पैसे खर्च। या फिर, सोसाइटी के पैसे से पर्सनल ट्रिप्स! कई रियल केस की जानकारी मैंने पहले दी है। आपकी सोसाइटी में भी ऐसा हो सकता है!"
प्रभाव और चेतावनी -
अगर मैनेजिंग कमिटी घपला करती है तो "इसका असर क्या होता है? आपका मेंटेनेंस बढ़ेगा, सुविधाएं कम होंगी, और ट्रस्ट टूटेगा।
MCS Act 1960 के सेक्शन 73 के तहत MC जवाबदेह है, लेकिन अगर फ्रॉड हो तो IPC 420 (धोखाधड़ी) लग सकता है।
सावधान रहने की जरूरत है - हर बिल चेक करें, मीटिंग्स अटेंड करें। अगर शक हो, तो रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज में शिकायत करें।"
सोच रहे होंगे कि इसका समाधान क्या है, तो समाधान भी जान लीजिए -]
"अब समाधान!
HousingSocietySolutions की सलाह:
1-ट्रांसपेरेंसी डिमांड करें: हर महीने फाइनेंशियल रिपोर्ट मंगवाएं।
2-ऑडिट करवाएं: इंडिपेंडेंट CA से सालाना ऑडिट।
3-कमिटी इलेक्शन: ईमानदार और जागरूक मेंबर्स को MC में चुनें। वोटिंग में एक्टिव रहें।
4-लीगल हेल्प: अगर फ्रॉड पकड़ में आए, तो पहले रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज में शिकायत करें। अगर वहां से बात ना बनें तो को-ऑपरेटिव कोर्ट जाएं।
5-AGM में हिस्सा लें
6-जागरूकता फैलाएं: अपने सोसाइटी मेंबर्स को जागरूक करें।
याद रखें: आपकी जागरूकता ही आपकी सोसाइटी की ताकत है!
याद रखें, जागरूक मेंबर मतलब = मजबूत सोसाइटी!"
"दोस्तों, अगर आपकी सोसाइटी में ऐसा हो रहा है, तो कमेंट में शेयर करें - हम हेल्प करेंगे! अगली वीडियो में बात करेंगेएक और नए टॉपिक पर। वीडियो लाइक और शेयर करें, चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें। धन्यवाद! जय हिंद!"