शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

बड़े अजीब होते हैं...को ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी के लोग


खुद की आड़े-तिरछे तस्वीरों के लिए भी

              Nice Nice लिखते हैं...

खुद के बच्चों की हंसती-मुस्कराती तस्वीरों के लिए

    अपनी अंगुलियों पर Ice Ice जमा लेते हैं...

हाउसिंग सोसायटी के लोग ... बड़े अजीब होते हैं। 


कमिटी में रहने पर, 

     मेंबर्स की तकलीफों को नजरअंदाज कर देते हैं...

जब कमिटी से हटते हैं, 

छोटी छोटी बातों पर इश्यू क्रिएट कर देते हैं...

हाउसिंग सोसायटी के लोग ... बड़े अजीब होते हैं। 


सोसायटी परिसर में थोड़ी सी गंदगी दिखने पर

                                        झल्लाते रहते हैं...

खुद जानबुझकर परिसर में गंदगी फैलाकर 

                             दादागिरी दिखाते हैं...

हाउसिंग सोसायटी के लोग ... बड़े अजीब होते हैं। 


काम और काम की बातों से 

          अक्सर दूरी बनाकर रखते हैं...

कोई काम करवाना चाहे तो,

उसमें अडंगा डालकर इठलाते हैं..

हाउसिंग सोसायटी के लोग ... बड़े अजीब होते हैं। 


कमिटी में आकर बिना चार्ज दिए,

सोसायटी परिसर में पर्सनल पार्टियां करते हैं...

सोसायटी के परिसर में ही 

घर का सामान रखते हैं...

हाउसिंग सोसायटी के लोग ... बड़े अजीब होते हैं। 


सोसायटी के लिए समर्पित होकर 

काम करने वालों को 

क्रेडिट तो दूर थैंक्स भी नहीं कहते हैं

पॉलिटिक्स करने वाले नकारों को भी 

वाह साहब, वाह साहब कहकर 

हौसला अफजाई करते हैं...

हाउसिंग सोसायटी के लोग ... बड़े अजीब होते हैं। 


सोसायटी के बैंक खाते में 

लाखों रुपए पड़े होते हैं

लेकिन भंगार होती बिल्डिंग को 

रिपेयर नहीं करवाते हैं

10-20 साल  से पेंडिंग पड़े 

कामों को भी टालते रहते हैं

हाउसिंग सोसायटी के लोग ... बड़े अजीब होते हैं। 


सेलेब्रेशन के नाम पर एक रात में

लाख-डेढ़ लाख रुपए खर्च कर देते हैं

इतने ही पैसों का सोसायटी का काम करवाने में 

सालों साल लगा देते हैं 

हाउसिंग सोसायटी के लोग ... बड़े अजीब होते हैं। 


सोसायटी के किराएदारों की भी 

अजब कहानी है 

सोसायटी की सारी सुविधाओं का लाभ उठाते हैं 

लेकिन सोसायटी के लोग जब सामूहिक काम करते हैं

तो दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आते हैं

हाउसिंग सोसायटी के लोग ... बड़े अजीब होते हैं। 



 

(को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में कुछ सदस्यों की राजनीति और मैनेजिंग कमिटी की लापरवाही किस तरह से वहां रहने वाले और उनकी फैमिली को खतरे में डालती है, इस किताब में आप पढ़ सकते हैं। किताब का नाम है- हाउसिंग सोसायटी में सियासत;    जान पर आफत!  - https://www.amazon.in/dp/B08X2RS7MB ) 


बड़े अजीब होते हैं...को ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी के लोग 

हाउसिंग सोसायटी और उसकी कमिटी के लोगों का 'Confusing Character'!

किसी भी हाउसिंग सोसायटी की सरकार होती है उसकी मैनेजिंग कमिटी

-हाउसिंग सोसायटी के कानून जानने के हैं बहुत सारे फायदे

 -हाउसिंग सोसायटी में कैसे होता है करप्शन का खेल!

- हाउसिंग सोसायटी के गंदे लोग!

-पढ़ें बंदी में कैसे रहें बिंदास!

 


बुधवार, 28 जुलाई 2021

हाउसिंग सोसायटी और उसकी कमिटी के लोगों का 'Confusing Character'!

             


हम किसी अजनबी को भी उसके अच्छे व्यवहार, उसकी किसी छोटी सी भी मदद के लिए थैंक्स कहते हैं। ये शिष्टाचार है। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया पर तो हम अजनबी की तस्वीरों या वीडियो पर Nice लिखकर कमेंट करते हैं, या थम्स अप करते हैं। व्हाट्स एप ग्रुप में अनाप-शनाप वीडियो शेयर करके उस पर भी हम कमेंट करते हैं। ये सब काम हमें काम से समय नहीं मिलता है फिर भी समय निकालकर करते हैं। 

लेकिन, यही आदत को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी और कमिटी के लोग अपनी सोसायटी को खूबसूरत और सेहतमंद बनाने के लिए खुद पर लागू नहीं करते।  काफी 'Confusing Character' वाले होते हैं को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी और उसकी कमिटी के लोग। 

जरो सोचिये, किसी को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी की किसी कमिटी के गिने-चुने लोगों के दम पर महज दो साल से भी कम समय में भंगार होती बिल्डिंग को रिपेयर करवाया, कलर करवाया, क्रैक फिलिंग करवाया, छत पर पतरा लगवाया, पानी की सप्लाई बढ़ाने के लिए एक्सट्रा वॉटर टंकी बनवाया, सालों से लीकेज से परेशान कई फ्लैटऑनर्स को उससे राहत दिलाया, बाउंड्री वॉल बनवाकर और गेट लगवाकर बिल्डिंग की सेफ्टी को बढ़ाया, तो वैसी कमिटी और कमिटी के वैसे समर्पित लोगों के लिए कुछ नहीं तो एक थैंक्स कहना बनता ही है, लेकिन उस सोसायटी के लोगों ने इस शिष्टाचार का भी पालन नहीं किया। हालांकि, इन कामों का वो भरपुर लाभ ले रहे हैं। इस काम का वो लोग भी मजे ले रहे हैं जिन्होंने इन कामों को रूकवाने के लिए पूरा जोर लगा दिया था। इन कामों में अडंगा डालने में उनलोगों ने कोई कसर बाकी नहीं रखा था। उन्होंने काम रुकवाने के लिए अपनी रातों की नींद तक गंवा दी थी। 

 

(को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में कुछ सदस्यों की राजनीति और मैनेजिंग कमिटी की लापरवाही किस तरह से वहां रहने वाले और उनकी फैमिली को खतरे में डालती है, इस किताब में आप पढ़ सकते हैं। किताब का नाम है- हाउसिंग सोसायटी में सियासत;    जान पर आफत!  - https://www.amazon.in/dp/B08X2RS7MB ) 

आप कह सकते हैं कि ये सोसायटी के लोगों के ही पैसे से बनाए गए लेकिन जिस कमिटी ने ये सब काम किया उस कमिटी से पहले भी तो कमिटी थी, वह कमिटी भी ये सब सारा काम कर सकती थी, लेकिन क्यों नहीं किया। ये बड़ा सवाल है। बहुत सारी को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी के बैंक खाते में लाखों -करोड़ों रुपए पड़े होते हैं और बिल्डिंग में भी काम करवाने की जरूरत होती है, लेकिन कमिटी के लोग काम नहीं करवाते हैं केवल राजनीति करते हैं और सेलेब्रेशन के नाम पर सोसायटी का पैसा खर्च करते हैं। 

अब बात कर लेते हैं को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी की कमिटी के लोगों की। अब करीब हर कमिटी के लोग व्हाट्स ग्रुप के जरिये जुड़े होते हैं और सोसायटी से जुड़े कामों पर ऑनलाइन ही चर्चा करते हैं। इससे समय की बचत होती है, काम में तेजी आती है और लोगों को अपने काम पर पूरा फोकस करने का मौका मिलता है। 

लेकिन, कमिटी के लोग इसको भी नजरअंदाज कर देते हैं। उन्हें क्रिकेट खेलने, पार्टियां करने, दोस्तों के साथ बैठकर दारू पीने का समय मिल जाता है, व्हाट्स पर ही दूसरे ग्रुप में फालतू के वीडियो, मैसेज पर कमेट करने और समय बर्बाद करने का मौका मिल जाता है लेकिन वही शख्स कमिटी के व्हाट्स ग्रुप में शेयर किसी जरूरी काम के बारे में टिप्पणी करने या अपनी बात रखने की जरूरत भी नहीं समझता है। 

जबकि अगर सोसायटी में कोई भी काम होगा और तेजी से होगा, तो उस शख्स और उसके परिवार की खुशहाली के लिए होगा। पर पता नहीं, क्यों कमिटी के काम के संबंध में शेयर किए मैसेज पर वैसे लोग ध्यान ही नहीं देते हैं।और जब कमिटी के व्हाट्स ग्रुप में काम के संबंध में वो अपनी बात नहीं रखते हैं तो भला कमिटी की बैठक में क्यों आएंगे। पता नहीं, लोग इतने लापरवाह क्यों होते हैं। जहां उनकी दुनिया बसती है, उसे खूबसूरत बनाने की जगह उसको नजरअंदाज कर देते हैं।  भगवान, सद्बुद्धि दे ऐसे लोगों को।....

हाउसिंग सोसायटी और उसकी कमिटी के लोगों का 'Confusing Character'!

किसी भी हाउसिंग सोसायटी की सरकार होती है उसकी मैनेजिंग कमिटी

-हाउसिंग सोसायटी के कानून जानने के हैं बहुत सारे फायदे

 -हाउसिंग सोसायटी में कैसे होता है करप्शन का खेल!

- हाउसिंग सोसायटी के गंदे लोग!

-पढ़ें बंदी में कैसे रहें बिंदास!

 


गुरुवार, 22 जुलाई 2021

किसी भी हाउसिंग सोसायटी की सरकार होती है उसकी मैनेजिंग कमिटी

             'हाउसिंग सोसायटी के हित में काम करना ही मैनेजिंग कमिटी की जिम्मेदारी होती है'


जब सरकार काम नहीं करती है, तो हम उसे गाली देते हैं, उसकी शिकायत करते हैं। मतलब सरकार का काम है काम करना। उसे कानून से असीमित अधिकार मिले हैं तो बहुत सारी जिम्मेदारियां भी निभानी होती है। सरकार कई स्तर पर काम करती है। जैसे-केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय सरकार (ग्राम पंचायत, जिला परिषद, नगरनिगम-नगरपालिका)। किसी भी लोकतंत्र में सरकार का मुख्य काम होता है जनता के कल्याण के लिए काम करना। 

किसी भी हाउसिंग सोसायटी की मैनेजिंग कमिटी भी एक तरह से सरकार ही होती है। को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी कानून के जरिये मैनेजिंग कमिटी को उस हाउसिंग सोसायटी की सीमा में कई अधिकार और जिम्मेदारियां मिली होती है। मैनेजिंग कमिटी को अपनी हाउसिंग सोसायटी के कल्याण के लिए काम करना होता है। सोसायटी के सदस्यों के साथ चर्चा करके सोसायटी के लिए स्वनियमन तैयार करना होता है। 

(को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में कुछ सदस्यों की राजनीति और मैनेजिंग कमिटी की लापरवाही किस तरह से वहां रहने वाले और उनकी फैमिली को खतरे में डालती है, इस किताब में आप पढ़ सकते हैं। किताब का नाम है- हाउसिंग सोसायटी में सियासत;    जान पर आफत!  - https://www.amazon.in/dp/B08X2RS7MB )

लेकिन, हाउसिंग सोसायटी के मामले में अक्सर देखने को मिलता है कि वहां की मैनेजिंग कमिटी के सदस्यों को अपने अधिकार और अपनी जिम्मेदारी की जानकारी नहीं रहती है। जो परंपरा चली आ रही होती है उसी ढर्रे पर सभी कमिटी चलती रहती है। अगर जानकारी रहती भी है तो य तो अपने घमंड की वजह से या फिर लापरवाही की वजह से सोसायटी के लिए काम नहीं करते हैं।  

आप ज्यादातर हाउसिंग सोसायटी में दो काम बहुत शिद्दत के साथ होते हुए देखेंगे। पहला,  समय पर सोसायटी के मेंबर्स से मेनटेनेंस वसूलना और दूसरा, सेलेब्रेशन जैसे कि सत्यनारायण पूजा, गणपति, नवरात्रि बगैरह। लेकिन, मेंबर्स से जो मेनटेनेंस वसूला जा रहा है, उस किस काम में खर्च करना है, कब खर्त करना है, खर्च करना भी है या नहीं करना, इन सबकी जानकारी नहीं रहती है, जानकारी रहती भी है तो जरूरत होने पर भी जानबुझकर खर्च नहीं करते हैं। 

इसको उदाहरण से समझिये। किसी हाउसिंग सोसायटी की बिल्डिंग में काई जम चुका है, दरारें आ गई हैं, सोसायटी के कई फ्लैट में लीकेज, सीपेज है यानी बिल्डिंग में रिपेयर, क्रैक फिलिंग, कलर के साथ साथ छत पर पतरा लगाने की जरूरत है, लेकिन मैनेजिंग कमिटी यह काम सालोंसाल लटकाए रहती है। इससे हाउसिंग सोसायटी की बिल्डिंग और उसके मेंबर्स की जान खतरे में रहती है। बारिश में कई बार 10-15 साल पुरानी बिल्डिंगों को भी धराशायी होने की खबर आप पढ़ते-देखते होंगे। ऐसा क्यों होता है। 

बिल्डिंग का सही से रख-रखाव नहीं करने की वजह से। हद तो तब हो जाती है जब  हाउसिंग सोसायटी के पास काम करवाने के लिए काफी पैसा बैंक अकाउंट में बेकार पड़ा रहता है फिर मैनेजिंग कमिटी के लोग काम नहीं करवाते हैं। चुंकि मैनेजिंग कमिटी किसी भी हाउसिंग सोसायटी की सरकार होती है, इसलिए जरूरत पड़ने पर बिल्डिंग का काम करवाना चाहिए। अगर सोसायटी के पास पैसे नहीं भी है तो सोसायटी सदस्यों को भरोसा में लेकर उनसे पैसा इकट्ठा करके रिपेयर का काम जरूर करवाना चाहिए। मैनेजिंग कमिटी को सोचना चाहिए कि पैसा जरूरी है या फिर लोगों की जान। इसलिए रिपेयर का काम करवाने में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। 

अब अगर मान लीजिए कि आपकी सोसायटी परिसर में हर बारिश में पानी जमा हो जाता है। ऐसा सरकारी गटर की ऊंचाई बढ़ाने से हो सकता है या फिर कुछ और कारण से। मैनेजिंग कमिटी को परिसर से पानी बाहर निकालने के उपायों पर विचार करना चाहिए, अपने सोसायटी मेंबर्स या किसी बाहरी एक्सपर्ट से इस बारे में बातचीत करनी चाहिए। क्योंकि सोसायटी में रहना हमें ही है, मेनटेनेंस भी हमें ही देना है, और मेनटेनेंस से मिले पैसों का खर्च भी हमें ही करना है। यानी समस्या का समाधान निकालने के लिए हमें किसी सरकारी परमिशन की जरूरत नहीं है और साथ ही  अगर समस्या का समाधान नहीं निकाले तो दिक्कत हमें ही होने वाली है। इसलिए मैनेजिंग कमिटी में रहते हुए काम करने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए। 

पानी की समस्या काफी गंभीर समस्या होती है। कई बार नगरपालिका पानी की सप्लाई इतना ज्यादा कर देती है कि सोसायटी की अंडरग्राउंड वॉटर टंकी में जगह नहीं होती है और पानी बर्बाद होता रहता है। इसके लिए मैनेजिंग कमिटी को एक्स्ट्रा टंकी बनाने के बारे में सोचना चाहिए। समस्या के समाधान के लिए थोड़ा वर्क आउट करना चाहिए। चुंकि सोसायटी के रख-रखाव की जिम्मेदारी आपने ली है तो आपको सोसायटी के लिए थोड़ा समय निकाल कर काम करना चाहिए। 

सोसायटी के बहुत सारे काम सालों साल पेंडिंग पड़े रहते हैं। उन कामों को देरी किए बिना निपटाने की कोशिश करनी चाहिए। सोसायटी से जुड़े तरह तरह के कागजात जैसे कि सोसायटी का ब्लू प्रिंट,  रजिस्ट्रेशन पेपर, पैन, टैन, सारा बिजली बिल, पानी बिल, सोसायटी मेंबर्स के फ्लैट के कागज, नॉमिनेशन, शेयर सर्टिफिकेट, सोसायटी के सामानों की लिस्ट, सोसायटी का बैंक अकाउंट सबको सुरक्षित और सही जगह पर रखने की आदत डालनी चाहिए। ऐसा ना होने पर भविष्य में सोसायटी को तकलीफ हो सकती है। 

कई सोसायटी में कुछ ही लोग बार बार मैनेजिंग कमिटी के लिए चुने जाते हैं। सोसायटी के दूसरे मेंबर्स द्वारा मैनेजिंग कमिटी में आने की रुचि नहीं दिखाने की वजह से एक ही लोग लंबे समय तक मैनेजिंग कमिटी में बने रहते हैं। कई बार ऐसे लोगों में एक तरह का घमंड आ जाता है, और उनका नेचर दादागिरी किस्म वाला हो जाता है। वो ना तो कई काम करते हैं, ना ही सोसायटी के किसी मेंबर्स की बात या समस्या सुनते हैं, बस अपनी ही मनमानी करते हैं। ऐसा करना किसी भी लोकतांत्रिक सरकार को शोभा नहीं देता है। इसलिए अगर आप किसी हाउसिंग सोसायटी की मैनेजिंग कमिटी में हैं तो उस सोसायटी के हित के लिए काम करें, क्योंकि मैनेजिंग कमिटी मतलब काम के प्रति समर्पण। 

मैनजिंग कमिटी में तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ना तो काम करना चाहते हैं, ना ही उन्हें काम आता है, केवल काम में अड़ंगा जरूर डालते हैं। कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो कि सोसायटी के पैसे को अपने बाप का माल समझ लेते हैं और उसे ना तो खर्च करते हैं और ना ही खर्च करने देते हैं। उन्हें लगता है कि सोसायटी का पैसा बचाकर वो सोसायटी के लोगों का समर्थन हासिल कर लेंगे। ऐसे लोगों से मैं अपील करता हूं कि सोसायटी का पैसा सोसायटी के कल्याण पर खर्च करने के लिए है, ना कि उसे जमा करने के लिए। हां, कुछ इमरजेंसी फंड के तौर पर पैसे रखा जा सकता है लेकिन,पैसे पर कुंडली मारकर कोई बैठ जाए और कहे कि मैं पैसा खर्च करने ही नहीं दूंगा, ये बिल्कुल गैर-कानूनी है। 

-हाउसिंग सोसायटी के कानून जानने के हैं बहुत सारे फायदे

 -हाउसिंग सोसायटी में कैसे होता है करप्शन का खेल!

- हाउसिंग सोसायटी के गंदे लोग!

-पढ़ें बंदी में कैसे रहें बिंदास!

बुधवार, 21 जुलाई 2021

अपनी हाउसिंग सोसायटी की समस्या सुलझाकर हंसिये, बेवजह विवाद बढ़ाने से बचिये


हमारी हाउसिंग सोसायटी यानी हमारा घर, हमारी खुशियां, हमारी दुनिया। हाउसिंग सोसायटी में कोई समस्या होना मतलब हमारे घर के लिए मुश्किल होना, हमारी खुशियों पर आफत आना। लेकिन, हाउसिंग सोसायटी में कुछ ऐसे सदस्य होते हैं, जो अपने फायदे के लिए, अपना दबदबा बनाए रखने के लिए, अपने अहं की संतुष्टि के लिए समस्या नहीं होने पर भी बेवजह विवाद पैदा करते हैं। ऐसे सदस्यों को समस्या का समाधान से कुछ लेना-देना नहीं होता है। हाउसिंग सोसायटी की मैनेजिंग कमिटी में रहते हुए भी चेयरमैन, सेक्रेटरी, ट्रेजरार जैसे महत्वपूर्ण पोस्ट को सुशोभित करते हुए भी कभी किसी समस्या का समाधान नहीं निकालते हैं। और जब नई कमिटी बनती है, तो हाउसिंग सोसायटी में ऐसे सदस्य बेवजह का विवाद पैदा करवाने में लगे रहते हैं। 

(को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में कुछ सदस्यों की राजनीति और मैनेजिंग कमिटी की लापरवाही किस तरह से वहां रहने वाले और उनकी फैमिली को खतरे में डालती है, इस किताब में आप पढ़ सकते हैं। किताब का नाम है- हाउसिंग सोसायटी में सियासत;    जान पर आफत!  - https://www.amazon.in/dp/B08X2RS7MB )

यहां हम एक हाउसिंग सोसायटी के कुछ सदस्यों द्वारा किए गए सोसायटीविरोधी गतिविधियों के बारे में बता रहे हैं। उस हाउसिंग सोसायटी का एक अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप है। उस ग्रुप को उन लोगों ने बनाया है, जो पहले मैनेजिंग कमिटी में थे और हो सकता है कि आने वाले दिनों में भी मैनेजिंग कमिटी में रहें। सोसायटी के उस अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कि उस हाउसिंग सोसायटी को छोड़कर जा चुके हैं। यानी ये अब बाहरी लोग हैं, जिन्हें खुद से इस ग्रुप से निकल जाना चाहिए या फिर उस अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप का जो एडमिन है उसे बाहर निकाल देना चाहिए। 

बात उन दिनों की है, जब उस हाउसिंग सोसायटी में नई कमिटी ने कमान संभाली। इसमें इससे पहले वाली कमिटी के एक भी लोग शामिल नहीं थे। पहले वाली कमिटी के लोग अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में उन बातों की चर्चा करने लगे, जो कि हाउसिंग सोसायटी की निजता, सुरक्षा के लिए संवेदनशील थी और उस ग्रुप पहले कभी भी उन बातों को लेकर चर्चा नहीं हुई थी। सोसायटी से जुड़े संवेदनशील बातों की चर्चा करने वाले कोई और सदस्य नहीं था, बल्कि पहले वाली कमिटी के ही लोग शामिल थे। 

नई कमिटी जब बनी तो उसने जर्जर जैसी बन चुकी हाउसिंग सोसायटी की बिल्डिंग का रिपेयर, कलर, क्रैक फिलिंग का काम करवाने की योजना बनाई। इसके लिए सिविल कॉन्ट्रैक्टर से संपर्क किया गया। सिविल कॉन्ट्रैक्टर का बिल्डिंग में आना-जाना शुरू हुआ। बिल्डिंग का जायजा लेने के लिए छत पर भी  जाना होता था। सिविल कॉन्ट्रैक्टर के इस काम में कई बार मैनेजिंग कमिटी के मेंबर होते थे, कई बार वॉचमैन होता था, कई बार कमिटी के सदस्य या वॉचमैन सिविल कॉन्ट्रैक्टर को एक खास जगह पर छोड़कर अपने दूसरे कामों में लग जाते थे। यानी बिल्डिंग का जायजा लेने वाले सिविल कॉन्ट्रैक्टर पर सबकी नजर बनी हुई रहती थी। लेकिन, इसे पहले वाली कमिटी के सदस्यों ने बेवजह विवाद का मुद्दा बनाना शुरू कर दिया। अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में एक ने सिविल कॉन्ट्रैक्टर की तरफ इशारा करते हुए और नई कमिटी पर कटाक्ष करते हुए शेयर किया कि - छत पर कोई अनजान व्यक्ति वॉचमैन या कमिटी के सदस्य की गैर-मौजूदगी में घूम रहा है, ऐसा कैसे हो रहा है। उस एक व्यक्ति द्वारा मैसेज शेयर करते ही पहले वाली कमिटी के सारे सदस्यों ने एक स्वर से लिखना शुरू किया-हां, ये गलत है, कमिटी के लोग क्या कर रहे हैं..बगैरह बगैरह। लेकिन, कॉन्ट्रैक्टर के साथ वॉचमैन वहां मौजूद था। इसलिए बखेड़ा करने की कोई जरूरत ही नहीं थी। 

दूसरी बात, अगर किसी को लग रहा है कि कॉन्ट्रैक्टर के साथ कोई है नहीं तो उसे कमिटी के लोगों से बात करनी चाहिए थी। लेकिन, उन लोगों ने ऐसा नहीं किया। साथ ही, इसके पहले भी बिल्डिंग का काम करने के लिए प्लंबर और कॉन्ट्रैक्टर आए थे, लेकिन कभी किसी ने कोई सवाल खड़े नहीं किए। आपको पहले ही बता चूका हूं कि उस  अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में कई बाहरी लोग भी थे। इस तरह से सोसायटी की संवेदनशील जानकारी उसी सोसायटी के ही सदस्यों द्वारा लीक किया जा रहा था। आप अगर किसी हाउसिंग सोसायटी में रहते हैं, तो ऐसा कतई मत कीजिएगा, क्योंकि आपकी हाउसिंग सोसायटी आपका घर है। 

ये कोई पहला मामला नहीं था जब उस हाउसिंग सोसायटी की पहली वाली कमिटी के मेंबर्स ने ऐसे बेवजह विवाद खड़ा करने की कोशिश की, बल्कि आगे भी कई बार वो ऐसा काम करते रहे। जैसे कि एक रविवार की बात है। हाउसिंग सोसायटी का ही एक मेंबर (मैनेजिंग कमिटी का मेंबर नहीं) घर में रिपेयर का कुछ काम करवा रहा था। जाहिर सी बात है जब रिपेयर का काम होगा तो आवाज आएगी ही। पहले से भी लोग रविवार को रिपेयर का काम करवाते आ रहे थे। तो विवाद पैदा करने जैसी कोई बात नहीं थी। लेकिन, चुंकि नई कमिटी से पहले वाली कमिटी को खुन्नस थी, इसलिए पहले वाली कमिटी के लोग फिर से वही हरकत करने लगे। 

अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में पहले वाली कमिटी के एक मेंबर ने मैसेज शेयर किया कि- नई कमिटी के लोग को कानून मालूम नहीं है, सोसायटी में क्या हो रहा है उसकी फिक्र नहीं है, क्या रविवार को कोई अपने घर में रिपेयर का काम करवाता है, रविवार को लोगों की छुट्टी रहती है, इसलिए उन्हें आराम करना होता है, बगैरह बगैरह। यानी एक तरह से नई कमिटी पर कटाक्ष किया गया। जरा आप ही सोचिए, किसी हाउसिंग सोसायटी के मेंबर को अपनी हाउसिंग सोसायटी को लेकर इस तरह से अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में विवाद पैदा करना सही है क्या। अगर किसी को किसी घर में किए जा रहे रिपेयर से दिक्कत हो रही हो, तो खुद जाकर उस शख्स से बात कर सकता है या फिर अगर उसकी बात रिपेयर करवाने वाला शख्स नहीं सुनता है तो मैनेजिंग कमिटी में शिकायत करनी चाहिए। लेकिन, सीधे अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में चर्चा करने की क्या जरूरत है इसकी। 

उस हाउसिंग सोसायटी की पहले वाली कमिटी के लोग नई कमिटी को जलील करने की कोशिश यहीं नहीं थमी। 2020 में कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा। काफी लोगों की नौकरियां चली गई। कई लोगों की आमदनी घट गई, काम-धंधे बंद हो जाने के कारण लोगों के सामने आर्थिक समस्या पैदा हो गई। ऐसे में उस हाउसिंग सोसायटी के भी कुछ फ्लैटऑनर्स को हर महीने मेनटेनेंस देना मुश्किल होने लगा था। हम सब जानते हैं कि हाउसिंग सोसायटी का सारा खर्च उस सोसायटी के मेंबर्स से वसूल किए जाने वाले मेनेटेनेंस चार्ज से चलता है। जो लोग कमिटी में रहते हैं या रह चुके होते हैं उनको भी ये बात अच्छे से मालूम है। लेकिन, जिस हाउसिंग सोसायटी की पहले वाली कमिटी के मेंबर्स की बात कर रहा हूं, वो लोग इस मुद्दे को भी बेवजह तूल देने लगे। एक बार फिर से वही पहले वाली कमिटी के लोगों का अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में नई कमिटी पर कटाक्ष वाला मैसेज शेयर होना शुरू हो गया। एक ने लिखा कि, जिसकी महीने की लाखों में सैलरी है, लॉकडाउन में लोगों की इनकम नहीं है, इसलिए तीन महीने का मेनटेनेंस माफ कर देना चाहिए। एक के लिखने के बाद पहले वाली कमिटी के सारे सदस्यों ने लिखना शुरू किया, यस, मैं भी सहमत हूं।  अगर किसी को मेनटेनेंस देने में दिक्कत हो, तो उसे सीधे मैनेजिंग कमिटी से बात करनी चाहिए। सोसायटी के चेयरमैन, सेक्रेटरी बगैरह से बात करनी चाहिए। लिखित में अपनी बात कहनी चाहिए। लेकिन, सोसायटी के अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में इस तरह की बात करने का किसी का क्या मकसद हो सकता है। ये तो बेवजह विवाद करने जैसा है। 

उस पहली वाली कमिटी की एक और हरकत जान लीजिए। हाउसिंग सोसायटी की हाल ही में खत्म हुई आम सालाना बैठक (एजीएम) में सोसायटी का ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप बनाने पर सहमति हुई थी। हालांकि उस एजीएम में अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप को ही ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में बदलने की सलाह कुछ लोगों ने दी थी, लेकिन ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप के एडमिन वाले, जो कि एडीएम को संबोधित करने वाली मैनेजिंग कमिटी के ही लोग थे, ने ऐसा करने से मना कर दिया था। उसी एजीएम में नई मैनेजिंग कमिटी के लिए मेंबर्स भी चुने गए थे। इन मेंबर्स में मौजूदा मेंबर्स में से एक भी शामिल नहीं थे। नई कमिटी ने कार्यभार संभालने के बाद सोसायटी का ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप बनाया, लेकिन इसमें मैसेज शेयर करने का अधिकार सिर्फ एडमिन को दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि बिना मतलब का मैसेज का शेयर ना हो, बिना मतलब की बातों पर चर्चा करके समय और ऊर्जा बर्बाद ना हो, केवल सोसायटी के लिए जरूरी सूचनाओं को ही शेयर किया जाए। आप सब जानते हैं बहुत सारे व्हाट्सअप ग्रुप में बिना मतलब का मैसेज शेयर किया जाता है। ऐसे में कई बार जरूरी मैसेज लोग पढ़ ही नहीं पाते हैं। सोसायटी के अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में भी अनाप-शनाप मैसेज को शेयर किया जाता है। जब ऑफिशियल व्हाट्स अप ग्रुप बनाकर मैसेज शेयर का अधिकार केवल एडमिन के लिए सुरक्षित रखा गया तो इस पर भी पहले वाली कमिटी के लोगों ने सोसायटी के अन-ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में आपत्ति जताने लगे। कहने लगे कि क्या हम सब अनपढ़ हैं, कि हमें मैसेज शेयर करने का अधिकार नहीं दिया गया, कुछ ने कहा कि सोसायटी के ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में दोनों तरफ से मैसेज का आदान-प्रदान होना चाहिए। पहले वाली कमिटी के करीब सभी सदस्यों ने सोसायटी के ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप सोसायटी के अन- ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप में बहिष्कार करते हुए ऑफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप से खुद को बाहर कर लिया। पहली वाली कमिटी को इस बारे में कमिटी से बात करनी चाहिए थी कि आपने ऐसा फैसला क्यों लिया। लेकिन, उनका इरादा तो बेवजह की समस्या खड़ी करनी थी, सियासत करनी थी। उन्हें दिखाना था कि हाउसिंग सोसायटी को चलाने की काबिलियत सिर्फ उन्हीं में है।  

तो, अगर आप किसी को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में रहते हैं, तो ऐसा कोई काम ना करें जिससे आपकी हाउसिंग सोसायटी के लिए समस्या पैदा हो और बेवजह बखेड़ा खड़ा हो, बल्कि अपनी हाउसिंग सोसायटी के लिए कुछ करना ही चाहते हैं तो हाउसिंग सोसायटी की उन समस्याओं का समाधान कीजिए, जिससे उस सोसायटी के लोगों को परेशानी हो रही है। 

 

-हाउसिंग सोसायटी के कानून जानने के हैं बहुत सारे फायदे

 -हाउसिंग सोसायटी में कैसे होता है करप्शन का खेल!

- हाउसिंग सोसायटी के गंदे लोग!

-पढ़ें बंदी में कैसे रहें बिंदास!

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

हाउसिंग सोसायटी में रहने वाले-क्या आप कानून जानते हैं?

                                हाउसिंग सोसायटी के कानून जानने के हैं बहुत सारे फायदे

            

महाराष्ट्र की को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में रहने वाले एक बात जान लें कि यहां हाउसिंग सोसायटी को चलाने के लिए, यहां की हाउसिंग सोसायटी में रहने वालों के लिए राज्य सरकार द्वारा कानून, नियम और उप-कानून बनाए गए हैं। समय समय पर जरूरत के हिसाब से उनमें बदलाव किए जाते हैं। 

जिन कानून के जरिये को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी चलाई जाती है उनके नाम हैं- महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव सोसायटी एक्ट 1960 (MCS Act 1960-Maharashtra Cooperative Society Act 1960), महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव सोसायटी रूल्स 1961 (MCS Rules 1961-Maharashtra Cooperative Society Rules 1961),  को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी बायलॉज(Cooperative Housing Society Model bye-laws revised in 2014), MCS Amendment Act 2019। 

इसके अलावा राज्य सरकार समय समय पर मौजूदा कानून में बदलाव करती रहती है, उस पर हाउसिंग सोसायटी में रहने वालों को नजर रखनी चाहिए। 



((In respect of applying Co-operative Housing Societies Manual 

https://sahakarayukta.maharashtra.gov.in/site/upload/documents/Housing%20Manual%202012%20English.pdf
(Commissioner and Registrar of Co-operative Societies, State of Maharashtra, Pune
https://sahakarayukta.maharashtra.gov.in/1058/Introduction 

एक उदाहरण से आपको बताता हूं कि को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी के लोगों के लिए कानून जानना क्यों जरूरी है। सोसायटी की नई कमिटी ने बिल्डिंग के रिपेयर, कलर, क्रैक फिलिंग काम के साथ साथ छत पर पतरा लगाने की अनुमति लेने के लिए सोसायटी में स्पेशल जेनरल मीटिग (SGM- विशेष आम बैठक) बुलाया। इसकी जरूरत इसलिए महसूस की गई कि पुरानी कमिटी ने एनुअल जनरल मीटिंग (AGM-सालाना आम बैठक) में रिपेयर काम के लिए जिस कॉन्ट्रेक्टर को मंजूरी दिलाई थी, उस कोटेशन में कुछ अस्पष्टता थी। नई कमिटी में ज्यादातर लोग नए थे, उन्हें को-ऑपरेटिव सोसायटी से जुड़े नियम, कानून, मॉडल बायलॉज की जानकारी नहीं थी। नई कमिटी के चेयरमैन काफी अनुभवी थे, लेकिन उनका फोकस सोसायटी के काम पर था, कानून वो भी नहीं जानते थे। अक्सर सोसायटी में सीए को रखा जाता है जो कि सोसायटी से जुड़े कानून की बारीकियों के बारे में सोसायटी की कमिटी को बताता है, मार्गदर्शन करता है।   

तो, जब एसजीएम शुरू भी नहीं हुई थी कि पुरानी कमिटी के सेक्रेटरी ने नई कमिटी के लोगों से पूछना शुरू किया कि -क्या आप कानून जानते हैं-। ये ऐसा सवाल था कि नई कमिटी के सब लोग हक्के-बक्के रह गए। क्योंकि वो काम को लेकर एसजीए बुलाए थे, ऐसे सवाल की उम्मीद उनको नहीं थीष और होती भी कैसे आज तक इस तरह के सवाल कभी किए ही नहीं गए हैं। जिस पूर्व सेक्रेटरी ने ये सवाल किया, वह दस साल से कमिटी में किसी ना किसी रूप में मौजूद था, लेकिन इसने साल में उसने कोई काम नहीं किया था। 

तो, कानून जानना इसलिए जरूरी है कि कोई आप से इस तरह का सवाल पूछकर आपको शर्मिन्दा ना करें, आपके काम करने के मनोबल को ना तोड़े। 



(को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में कुछ सदस्यों की राजनीति और मैनेजिंग कमिटी की लापरवाही किस तरह से वहां रहने वाले और उनकी फैमिली को खतरे में डालती है, इस किताब में आप पढ़ सकते हैं। किताब का नाम है- हाउसिंग सोसायटी में सियासत;    जान पर आफत!  - https://www.amazon.in/dp/B08X2RS7MB )

दरअसल, हाउसिंग सोसायटी को चलाने के लिए मैनेजिंग कमिटी होती है, जिसके सदस्य उसी सोसायटी के होते हैं और उन्हें चुनते भी हैं उसी सोसायटी के लोग। मैनेजिंग कमिटी के सदस्य बनने के लिए बहुत कम लोग रुचि दिखाते हैं, क्योंकि कमिटी में रहने पर सोसायटी के लिए बिना मेहनताना लिए काम करना होता है यानि सोसायटी
पर समय देना होता है, सोसायटी में किसी भी गड़बड़ी के लिए कमिटी जिम्मेदार होती है और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाती है। 

सोसायटी में बहुत तरह के काम होते हैं, जैसे एक सरकार के पास काम होता है। सोसायटी को साफ-सफाई,रखना, बिजली, पानी और सीसीटीवी कैमरा का इंतजाम, बिल्डिंग के लिए इंश्योरेंस लेना, सोसायटी परिसर की सड़क को दुरुस्त रखना,   सदस्यों से सोसायटी चलाने के लिए मेनटेनेंस लेना, वॉचमैन, स्वीपर रखना और उन्हें सैलरी देना, पार्किंग की व्यवस्था करना, बिल्डिंग की रिपेयरिंग करना,बिल्डिंग और सदस्यों की सेफ्टी का पूरा ख्याल रखना, शेयर सर्टिफिकेट जारी करना, नॉमिनेशन फॉर्म स्वीकार करके उसका रसीद देना, सदस्यों को एनओसी देना, सेलेब्रेशन बगैरह का आयोजन करना बगैरह बगैरह। इस तरह से कमिटी को बहुत काम करने होते हैं, लेकिन बिना सैलरी के। ऐसे में कमिटी में आने से ज्यादातर लोग हिचकते हैं। 

इससे बहुत सारी हाउसिंग सोसायटी में कुछ ही लोग काफी लंबे समय तक कमिटी में रहते हैं, जिससे उनमें एक तरह का घमंड आ जाता है, अहं आ जाता है और अगर कोई नहीं कमिटी आती है, वो लोग नई कमिटी वाले को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। जैसा कि ऊपर के एक उदाहरण में आपने देखा।

एक बात और, महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव सोसायटी कानून के मुताबिक, सोसायटी के सदस्यों से मेनटेनेंस में  एजुकेशन एवं ट्रेनिंग फंड के नाम पर हर महीने प्रति फ्लैट 10 रुपए लिया जाता है। एजुकेशन एवं ट्रेनिंग के दौरान सदस्यों को को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी से जुड़े नियम, कानून, मॉडल बायलॉज की जानकारी दी जाती है। सहकार भारती महाराष्ट्र प्रदेश को एजुकेशन एवं ट्रेनिंग दिलाने की जिम्मेदारी दी गई। कानून तौर पर सोसायटी के सदस्यों को एजुकेशन एवं ट्रेनिंग लेनी जरूरी है। सहकार भारती महाराष्ट्र प्रदेश समय समय पर एजुकेशन एवं ट्रेनिंग की तारीखों की जानकारी देता है। ट्रेनिंग लेने के लिए सोसायटी की कमिटी को एजुकेशन एवं ट्रेनिंग फंड से सहकार भारती को भुगतान करना होता है। सहकार भारती ट्रेनिंग लेने वालों को सर्टिफिकेट देता है जो कि सोसायटी की संपत्ति होती है। इसलिए आप जरूर ट्रेनिंग लें।  




अगर आप को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में रहते हैं, तो उससे जुड़े कानून, नियम, उप-नियम जानना आपके लिए बहुत जरूरी है। कानून, नियम कहीं के भी हो, उससे लोगों को उनकी जिम्मेदारियां, उनके अधिकार तय किये जाते हैं। जैसे देश के स्तर पर बात करें तो संविधान है, कई तरह के कानून हैं, जिसे हमें मानना पड़ता है। उसी प्रकार राज्य स्तर की बात करें तो यहां भी हमें बहुत सारे कानून , नियम का पालन करना होता है, स्थानीय सरकार स्तर जैसे कि जिला परिषद, पंचायत, नगरपालिका, नगरनिगम स्तर की बात करें तो यहां भी हमें बहुत सारे नियम, कानून मानने होते हैं। समाज को देश को राज्य को शहर को सुचारू तरीके से चलाने के लिए कानून और नियम होने जरूरी हैं। साथ ही वहां के लोगों के लिए भी कानून और नियम का पालन करना जरूरी है। 

>THE MAHARASHTRA CO-OPERATIVE SOCIETIES ACT, 1960 में शामिल विषय वस्तु: 
PREAMBLE
Chapter: I - PRELIMINARY (Section 1 and 2)
Chapter: II - REGISTRATION (Section 3 to 21A)
Chapter: III - MEMBERS AND THEIR RIGHTS AND LIABILITIES (Section 22 to 35)
Chapter: IV - INCORPORATION DUTIES AND PRIVILEGES OF SOCIETIES (Section 36 to 49)
Chapter: V - STATE AID TO SOCIETIES (Section 50 to 63)
Chapter: VI - PROPERTY AND FUNDS OF SOCIETIES (Section 64 to 71A)
Chapter: VII - MANAGEMENT OF SOCIETIES (Section 72 to 80)
Chapter: VIII - AUDIT, INQUIRY, INSPECTION AND SUPERVISION (Section 81 to 90)
Chapter: IX - SETTLEMENT OP DISPUTES (Section 91 to 101)
Chapter: X - LIQUIDATION - Section 102 to 110
Chapter XA - INSURED CO-OPERATIVE BANK - Section 110A
Chapter: XI - AGRICULTURE AND RURAL DEVELOPMENT BANKS - Section 111 to 144-IB
Chapter: XIA - ELECTIONS OF COMMITTEES AND OFFICERS OF CERTAIN SOCIETIES - Section 144A to 144Y
Chapter: XII - OFFENCES AND PENALTIES - Section 145 to 148A
Chapter: XIII - APPEALS, REVIEW AND REVISION - Section 149 to 154
Chapter: XIII-A - MAHARASHTRA STATE CO-OPERATIVE COUNCIL - Section 154A
Chapter: XIV - MISCELLANEOUS - Section 155 to 167

>MAHARASHTRA CO-OPERATIVE SOCIETIES RULES, 1961 के विषय वस्तु:
Chapter I - Preliminary (Rule No 1 and 2)
Chapter II - Registration (Rule No 3 to 18C)
Chapter III - Members and their rights and liabilities (Rule No 19 to 30)
Chapter IV - Incorporation, duties and privileges of societies (Rule No 31 to 48)
Chapter V - Property and funds of societies (Rule No 49 to 56)
Chapter VA - Election to Notified Societies, Etc. (Rule No 56A to 56A-35)
Chapter VI - Management of Societies (Rule No 57 to 68)
Chapter VII - Audit, Inquiry, Inspection and Supervision (Rule No 69 to 74)
Chapter VII - Disputes and Co-operative Courts (Rule No 75 to 86)
Chapter IX - Liquidation (Rule No 87 to 92)
Chapter X - Land Development Banks (Rule No 93 to 103)
Chapter XI - Appeals, Review and Revision (Rule No 104 to 106)
Chapter XII - Miscellaneous (Rule No 107 to 110)

>MODEL BYE–LAWS OF COOPERATIVE HOUSING SOCIETY (Tenant Co‐Partnership Housing Society) के विषय वस्तु

I. PRELIMINARY
1 (a) Name of the Society
(b) Procedure of changing the name
(c) Classification
2 (a) Address of the Society
(b) Intimation of change in the address of the Society
(c) Procedure for changing the address of the Society
(d) Exhibition of the name Board

II. INTERPRETATIONS
III. AREA OF OPERATION
IV. OBJECTS
V. AFFILIATION
VI. FUNDS, THEIR UTILISATION AND INVESTMENT
(A) Raising of Funds
(B) Share Capital
(C) Limit of Laibilities
(D) Constitution of the Reserve Fund
(E) Creation of Other Funds
(F) Utilisation of Funds by the Society
(G) Investment of Funds

VII. MEMBERS, THEIR RIGHTS, RESPONSIBILITY AND LIABILITIES
VIII. RESPONSIBILITY AND LIABILITIES OF MEMBERS
IX. LEVY OF CHARGES OF THE SOCIETY
X. INCORPORATION OF DUTIES AND POWER OF THE SOCIETY
XI. GENERAL MEETINGS
XII. MANAGEMENT OF THE AFFAIRS OF THE SOCIETY
XIII. MAINTENANCE OF BOOKS OF ACCOUNT AND REGISTERS
XIV. APPROPRIATION OF PROFITS
(a) Contribution to the Statutory Reserve Fund of the Society
(b) Distribution of the remaining profit of the society
XV. TO WRITE OFf IRRECOVERABLE DUES
XVI. AUDIT OF ACCOUNTS OF THE SOCIETY
XVII. CONVEYANCE OF THE PROPERTY AND REPAIR
 TO AND MAINTENANCE OF THE PROPERTY
XVIII. OTHER MISCELLANEOUS MATTERS
XIX. REDRESSAL OF MEMBERS COMPLAINTS
XX. REGARDING REDEVELOPMENT OF BUILDING 
THE CO-OPERATIVE HOUSING SOCIETIES


-हाउसिंग सोसायटी के कानून जानने के हैं बहुत सारे फायदे

 -हाउसिंग सोसायटी में कैसे होता है करप्शन का खेल!

- हाउसिंग सोसायटी के गंदे लोग!

-पढ़ें बंदी में कैसे रहें बिंदास!

सोमवार, 12 जुलाई 2021

हाउसिंग सोसायटी में कैसे होता है करप्शन का खेल!





को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में करप्शन का खेल, जी हां। सुनकर चौंक गए, ना। लेकिन, 
ये सच है। आप सोचते होंगे कि नेता, विधायक, नगरसेवक, मंत्री, सरकारी कर्मचारी, सरकारी अधिकारी बगैरह ही करप्शन के खेल में शामिल होते होंगे, लेकिन सच सिर्फ ये नहीं है। जिस हाउसिंग सोसायटी में आप खुशी खुशी रहते हैं, वहां भी करप्शन होता है। करप्शन कोई कर सकता है। मैनेजिंग कमिटी के सदस्य, चेयरमैन, सेक्रेटरी, ट्रेजरर, या फिर सोसायटी का कोई आम सदस्य भी।

(को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में कुछ सदस्यों की राजनीति और मैनेजिंग कमिटी की लापरवाही किस तरह से वहां रहने वाले और उनकी फैमिली को खतरे में डालती है, इस किताब में आप पढ़ सकते हैं। किताब का नाम है- हाउसिंग सोसायटी में सियासत;    जान पर आफत!  - https://www.amazon.in/dp/B08X2RS7MB )


करप्शन का मौका देता है सोसायटी से जुड़े काम। सोसायटी में कई तरह के काम करने होते हैं। हर काम पर होने वाले खर्च का हिसाब रखना होता है। किसी सामान के बदले दुकानदार से रसीद लेना होता है, रसीद नहीं होने पर वाउचर बनाना होता है, ज्यादा रकम वाले काम के लिए कम से कम तीन कोटेशन मंगवाने होते हैं। आमतौर पर कोटेशन में कमीशनखोरी, वाउचर में ज्यादा रकम बताना, गलत रसीद बनवाना- ये सब हाउसिंग सोसायटी में करप्शन का खेल खेलने देते हैं। कई बार सोसायटी का सदस्य सोसायटी में होने वाले काम में अडंगा लगाता है, और वह तब जाकर मानता है जब काम करने करवाने वाला कॉन्ट्रैक्टर या तो उसे पैसे देता है या फिर किसी रेस्टोरेंट बगैरह में पार्टी देता है।

यहां हम कुछ सोसायटी (नाम नहीं लेंगे) में होने वाले करप्शन के खेल की चर्चा कर रहे हैं। हालांकि, इसका कोई सबूत मेरे पास नहीं है। बस, संबंधित सोसायटी के लोगों और उस सोसायटी में काम करने वाले कॉन्ट्रैक्टर या इलेक्ट्रिशियन या गटर सफाई करने वालों की बातों के आधार पर ये जानकारी दे रहा हूं।

एक सोसायटी में नगरपालिका के पानी के पाइपलाइन से सोसायटी की टंकी को जोड़ना था। इस काम के लिए कॉन्ट्रैक्टर को सोसायटी की मैनेजिंग कमिटी ने 80 हजार रुपए दिए। सोसायटी की सालाना आम बैठक (एजीएम) में भी 80 हजार रुपए ही पास कराए गए थे। उसी सोसायटी का एक सदस्य भी टंकी और पाइपलाइन का काम करता है। एजीएम में वो भी था लेकिन जब काम पूरा हुआ, तो उस सदस्य को लगा कि कॉन्ट्रैक्टर को जितना दिया गया वो ज्यादा था। बाद में उस सदस्य ने  उस कॉन्ट्रैक्टर का कोटेशन देखा तो वह महज 50 हजार रुपए का था। यानी मैनेजिंग कमिटी ने 30 हजार रुपए ज्यादा एजीएम में पास कराया। बाद में पता चला कि सोसायटी के सेक्रेटरी ने कमीशन खाया था।

एक दूसरी सोसायटी की बात करता हूं। सोसायटी में डिस्टेंपर का काम कराना था। ज्यादा काम नहीं था। एक कॉन्ट्रैक्टर ने 40 हजार रुपए का कोटेशन दिया था। इस पर सोसायटी के चेयरमैन ने कॉन्ट्रैक्टर से ज्यादा पैसों का
कोटेशन देने को कहा। कॉन्ट्रैक्टर को काम चाहिए था, चेयरमैन ने जैसा कहा, कॉन्ट्रैक्टर ने वैसा किया। कॉन्ट्रैक्टर
ने 80 हजार का संशोधित कोटेशन दिया। बाद में पता चला कि चेयरमैन ने कॉन्ट्रैक्टर से कमीशन खाया।

एक और सोसायटी की बात बताता हूं। एक सोसायटी की ईमानदार मैनेजिंग कमिटी ने एक कॉन्ट्रैक्टर को सोसायटी की बिल्डिंग के रिपेयर, कलर, क्रैकफिलिंग का काम दिया।  यहां पर करप्शन का खेल कमिटी वालों ने नहीं, बल्कि सोसायटी के कुछ सदस्यों ने खेला। उनका करप्शन का खेल खेलने का तरीका भी अनोखा था। वो कॉन्ट्रैक्टर के हर काम का विरोध करते थे और बेवजह गलतियां निकाला करते थे। कॉन्ट्रैक्टर भी उनकी इस आदत से परेशान हो गया। कॉन्ट्रैक्टर ने इसका तरीका खुद ही निकाला। जो लोग कॉन्ट्रैक्टर के काम का विरोध करते थे, उनको कॉन्ट्रैक्टर ने रेस्टोरेंट में पार्टी दी और जमकर शराब पिलाई। इसके बाद से सोसायटी के सदस्यों ने कॉन्ट्रैक्टर के काम का विरोध करना छोड़ दिया।

एक दूसरी सोसायटी के सेक्रेटरी ने तो बड़ा हाथ मारा। सोसायटी के सदस्यों को भी इसका पता तब चला जब वह सेक्रेटरी सोसायटी के अपने फ्लैट को बेचकर दूसरी जगह फ्लैट ले लिया। सेक्रेटरी ने सोसायटी की एजीएम में करीब 35 लाख रुपए का बिल्डिंग के रिपेयर, कलर, क्रैक फिलिंग का कोटेशन पास करवाया। उस कॉन्ट्रैक्टर से काम देने के बदले 5 लाख रुपए कमीशन लिया। कॉन्ट्रैक्टर ने जब काम खत्म किया, तो उस सोसायटी के लोग काम से संतुष्ट नहीं हुए। इसी बीच सोसायटी का सेक्रेटरी अपना फ्लैट बेच चुका था और दूसरी जगह फ्लैट ले चुका था। सोसायटी के लोगों ने कॉन्ट्रैक्टर से खराब काम के बारे में पूछा, तो उसने सीधा जवाब दिया "मैं क्या करूं सेक्रेटरी ने मुझसे 5 लाख रुपए लिए और अब बाकी के पैसे में जैसा काम हो सकता था वैसा काम किया। "

कई सोसायटी में इलेक्ट्रिशियन का काम करने वाले एक शख्स का कहना है कि सोसायटी का चेयरमैन आकर उससे पैसे मांगते रहता है। सोसायटी में नियमित तौर पर गटर साफ करने वाले एक शख्स का कहना है कि कुछ सोसायटी के चेयरमैन उससे आकर पैसे मांगते रहता है। इलेक्ट्रिशियन और गटर साफ करने वाले शख्स का कहना है कि काम दिलाने के नाम पर चेयरमैन अक्सर पैसे मांगता है।

एक सोसायटी में तो छत पर पतरा लगाने वाला कॉन्ट्रैक्टर ने काम को बीच में ही छोड़ दिया। सोसायटी के लोगों ने जब कॉन्ट्रैक्टर से इस बारे में सवाल किया गया था, तो कॉन्ट्रैक्टर ने कहा " मैं क्या करूं, सेक्रेटरी और चेयरमैन ने हमसे पैसा लिया है। बचे पैसे में जितना काम हो सकता था, उतना कर दिया। " इस बात की खबर जब सोसायटी के सदस्यों को लगी तो सेक्रेटरी और चेयरमैन को तुरंत पद से नहीं, बल्कि कमिटी से भी हटा दिया गया। और फिर बाकी के पैसे कॉन्ट्रैक्टर को देकर काम पूरा करवाया गया।

हालांकि, कई बार कुछ सोसायटी के चेयरमैन, सेक्रेटरी  करप्शन के गलत आरोप में भी फंस जाते हैं। सोसायटी
का कोई काम करवाने के लिए कॉन्ट्रैक्टर को पैसे तो देते हैं, लेकिन कॉन्ट्रैक्टर पैसे लेकर शहर छोड़कर ही भाग
जाता है। ऐसे में सारा दोष चेयरमैन, सेक्रेटरी पर मढ़ दिया जाता है और पैसे खाने का इल्जाम लगा दिया जाता है।

 -हाउसिंग सोसायटी में कैसे होता है करप्शन का खेल!

- हाउसिंग सोसायटी के गंदे लोग!

-पढ़ें बंदी में कैसे रहें बिंदास!

Housing Society की AGM में 16 सवाल जरूर पूछें II Housing Society Solutio...

Must ask these 16 questions in your Housing Society AGM. हाउसिंग सोसायटी में रहने वाले बहुत सारे सदस्य अपनी सोसायटी की सालाना आम बैठक (एजीएम...